विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास-रात्रि में पूर्ण चंद्र का दर्शनइस संकोच को दूर करने के लिए स्वयं चंद्रमा ने मंगलाचरण किया कि अरे बाबा! जो तुम करने जा रहे हो वह हम भी करते हैं। इसके लिए चंद्रमा ने अपनी पत्नी प्राची के मुख पर अनुराग का रंग लगाकर श्रृंगार रस का सूत्रपात किया। जब बच्चों के सामने बड़े-बूढ़े हँसने लगते हैं तो बच्चों का जो डर-संकोच है, वह छूट जाता है। चंद्रवंश के आदि पुरुष चंद्रमा ने श्रीकृष्ण चंद्र से कहा बेटे, तुम संकोच मत करो, तुम पृथ्वी पर रास करो और हम आसमान में कर रहे हैं। इससे भी श्रीकृष्ण और चंद्रमा की एकता हो गयी। चंद्रमा भी उडुराज हैं और श्रीकृष्ण भी उडुराज हैं- उरुषु गोपीजनेषु राजते इति उडुराजः बहुत सारी गोपीजनों में ये रास-विलास करते हैं। इसलिए कृष्ण उडुराज हैं। चंद्रमा पक्ष में प्राच्याः ककुभः, मुखं। प्राची दिशा का मुख-षष्ठ्यन्त प्रयोग है ककुभ का (ककुभ माने दिशा) और कृष्ण पक्ष में येन सुखने कौ पृथिव्यां भाति इति ककुभः प्रथमान्त प्रयोग है। तो तदोडुराजः ककुभः करैर्मुखं- श्रीकृष्ण लीला करने वाले हैं तो अपनी सेवा तो कर देनी चाहिए, इसलिए सब जगह अनुराग का रंग डाल-डाल करके अपनी शीतल शान्तिदायी किरणों से चंद्रमा ने प्राची के मुक को लाल कर दिया। माने देवी-देवता भी श्रीकृष्ण का विहार देखने के लिए अनुराग में डूब जाते थे। अब दूसरी बात- सचर्षणीनामुदगाच्छुचो मृजन्। चर्षणयः प्रजाः। चंद्रमा जब उदय होता है तब लोगों का दिन भर का ताप शान्त हो जाता है। देखो आश्विन के महीना में दिन में खूब धूप पड़ती है, सूर्य भी अपना प्रकाश दिखाते हैं, आश्विन मास में बालार्कः तरुणायते। बड़े-बूढ़े लोग भी, जब उनमें श्रृंगार का भाव उदय होता है, तो तन कर चलने लगते हैं। इसी प्रकार जब सूर्य कन्या राशि पर आता है तो तरुण हो जाता है। यह सूर्य का प्रताप नहीं है, यह कन्याराशि की महिमा है। तो सचर्षणीनामुदगाच्छुचो मृजन्- सारी प्रजा का कष्ट दूर करते हुए, शोक दूर करते हुए, उनके आँसू पोंछते हुए, चंद्रमा पधारे। अब इसमें उपमा आती है- प्रियः प्रियाया इव दीर्घदर्शनः जैसे कोई प्रिय, प्रियतम बहुत दिन से परदेश गया हो और लौटकर आवे-प्रियः प्रियाया इव और देखे- कि उसकी पत्नी की आँख से आँसू बह रहे हैं और वह अपने शीतल हाथों से स्वयं अपनी प्रिया के आँसू पोंछे, और आँसू ही न पोंछे उसके मुँह में रंग लगा दे, उसके साथ हास्य विनोद करने लग जाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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