विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरासलीला का अन्तरंग-3परिष्वंग माने हृदय से लगा देना, अर्थात हृदय में जो प्रेम है उसको जगानाः कराभिमर्श माने हाथ को छूना, अर्थात संपूर्ण क्रियाशक्ति को लेना। स्निग्धेक्षण- अपने हृदय मे जो स्नेह है, उसको आँखों में भरकर सामने वाले के आँखों में बरसा देना। उद्दाम विलास हास- विलास और हास में कोई मर्यादा नहीं है। और भगवान श्रीकृष्ण रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिः...... गोपियों के साथ नृत्य कर रहे हैं। बोले- ठीक है, गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति काम होना उनकी उन्नति का लक्षण है परंतु श्रीकृष्ण के हृदय में गोपियों के प्रति काम है कि नहीं? एक यह भी प्रश्न है। अरे, प्रश्न तो ऐसा-ऐसा आता है कि एक बार श्रीकरपात्री जी महाराज से बात हुई। तो कह रहे थे कि आजकल के लोग जैसा तर्क करते हैं, जैसी युक्ति देते हैं, उनको सुनकर तो हँसी आती है। पहले के लोगों ने तो ऐसे-ऐसे तर्क दिए हैं, ऐसी-ऐसी युक्तियाँ दी हैं, ऐसे-ऐसे प्रश्न उठाये हैं कि यदि उनके द्वारा उठाया हुआ प्रश्न लोगों के सामने रख दें तो उनके लिए उनका समाधान करना कठिन हो जायेगा। वह तो उन्होंने ही प्रश्न उठाया है और समाधान किया है। अब यह प्रश्न है कि गोपी श्रीकृष्ण के प्रति कामना करती है तो गोपी का तो उत्थान होता है, क्योंकि संसार की कामना छूटती है और जिसके प्रति कामना है उस भगवान के पास पहुँच जायेगी। हमारे जीवन में शरीर मोटर है, जीव इसमें मालिक बैठा हुआ है और काम इसमें ड्राइवर है। जिसकी कामना होगी उसके पास यह शरीर पहुँच जायेगा, काम जीव को ले जाकर वहीं पहुँचा देगा। लेकिन कृष्ण के प्रति प्रेमियों के मन में काम है कि नहीं? और काम है तो कृष्ण कहाँ पहुँचावेंगे? उनकी क्या गति होगी? एक और प्रश्न उठाते हैं। बोले- भाई, श्रीकृष्ण तो साक्षात ब्रह्म हैं, भगवान हैं, और या ब्रह्मज्ञ तो हैं ही। ये तो धर्म करें अधर्म करें, न वे करत हैं न भोक्ता हैं; इसलिए वह तो पाप-पुण्य-मुक्त हैं, उनको तो पाप-पुण्य लगेगा नहीं। लेकिन ये गोपियाँ तो ब्रह्मज्ञ नहीं है, ये जब धर्म का उल्लंघन करेंगी, उनको तो पाप लगेगा, नारायण! ये सब प्रश्न उठाकर हमारे पूर्वज महात्माओं ने इसका समाधान किया है, भला! श्रीवल्लभाचार्यजी महाराज ने यह प्रश्न उठाया है। तो अब आपको यह सुनाते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के साथ कैसे रासलीला करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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