विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरासलीला का अन्तरंग-1भगवान हैं माने ऐश्वर्यशाली हैं, और कृष्ण हैं माने प्यारा है, और महात्मा? महात्मा, यह बड़ी विलक्षण बात है। ऐश्वर्यशाली हैं माने कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुम्समर्थ हैं। ‘अन्यथा कर्तुं समर्थ’ का क्या अर्थ हुआ? आपको रासपञ्चाध्यायी का सार सुनाता हूँ कि गोपियाँ जब श्रीकृष्ण के पास आयीं थीं- अह यह देखो श्रीवल्लभाचार्य जी महाराज के सम्प्रदाय के अनुसार व्याख्या है- तो उनके अन्दर अभिमान की मात्रा थी; तो जो लेकर आयी थीं वही उनको दिया। मान दिया- यह भगवान का स्वातन्त्र्य है। मान दिया, तो मान में मान डाल दिया। क्योंकि जो आदमी लाता है वही उसको मिलता है; प्रेम लाओ तो प्रेम मिलेगा। मान लाओ तो मान मिलेगा। भगवान ने कहा- इनके अन्द जो मान है वह अभी छिपा है, आगे जब हम इनके साथ रास-विलास करेंगे तो जाहिर हो जायेगा और जब जाहिर हो जायेगा तो उस समय ये सब आपस में लड़ेंगी क्योंकि अभिमान अभिमान से लड़ता है, मान मान से लड़ता है। तो जिस समय रस का समय होगा उस समय ये आपस में मान करके लड़कर के रस को किरकिरा कर देंगी। अतः क्या करना कि पहले ही उसको दूर करना। यह श्रीकृष्ण का प्रेम है, हाँ। देखो- हमारा प्यारा सामने आये और उसके मुँह पर कही कोई काला दाग लगा हो तो आप पोंछ दोगे कि नहीं? है न। हमारे चश्मे में जब चन्दन लगा होता है, फूल लगा होता है तो लोग उसको दूर कर देते हैं कि नहीं? तो कृष्ण ने कहा- इतना प्रेम लेकर ये गोपी आयीं, हमने इनको बुलाया। आज तक कभी किसी मानवाले को तो मैं प्राप्त हुआ नही हूँ, लेकिन यदि मैं कह दूँ कि गोपियो, तुम्हारे अन्दर बहुत मान है तो? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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