विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास-स्थली की शोभाहमको ऐसा लगता है कि जगत् के मूल में तत्त्व है वह नाचने वाला जरूर होना चाहिए। कारण उपादान में नृत्य न होता, तो कार्य में नृत्य कहाँ से आता? हमने देखा कि दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं है, जो नाचती नहीं है, बल्कि वह मण्डलाकार नृत्य करती है। पृथ्वी अपनी धुरी में और सूर्य के चारों ओर घूमती है। माने अपने मण्डल में स्वयं घुमती है और समूचे मण्डल में घूमकर सूर्य की परिक्रमा भी कर लेती है। चंद्रमा नाच रहा है, सूर्य नाच रहा है, नारायण! अग्नि प्रज्ज्वलित होती है तो उसकी लपटें कैसा नृत्य करती हैं। समुद्र की लहरें, गंगा की लहरें कैसा नृत्य करती हैं। वायु के झकोरे कैसे नाचते हैं। आकाश में क्या प्रकाश फैलता है झिलमिल, झिलमिल! हमारी आँख कैसी नाचती हैं; हमारा मन कैसा नाचता है, संसार की उसी नर्तक का नृत्य है, यह अविद्या नदी भी परब्रह्म परमात्मा के सकाश से नृत्य कर रही है। स्वयं परमात्मा नृत्य कर रहा है-
आपकी आँख कभी नाचती हैं, कभी भौहें नाचती हैं? अब एक आदमी ने पूछा कि आखिर ये चैतन्य जड़ कैसे मालूम पड़ते हैं? मैंने कहा कि अच्छा, एक स्वस्थ आदमी है जिसके दोनों पाँव ठीक-ठाक हैं, और वह लँगड़ाकर चलने लगे तो क्या कहोगे ना कि मस्ती कर रहा है। यही हुई न मस्ती की पाँव ठीक ह और लँगड़ाकर चले या कि आँख ठीक हो और काना बनकर देखे। तो मैंने कहा कि यह ब्रह्म भी मस्ती कर रहा है। यह संसार ब्रह्म की मस्ती है, यह ब्रह्म की स्फुरणा है, यह ब्रह्म का नृत्य है, यह ब्रह्म की मौज है। मौज माने तरंग; जैसे समुद्र में तरंग उठती हैं। यह ब्रह्म की मस्ती है कि वह नाना रूप धारण करके, नाना आकार धारण करके, नाना विकार-प्रकार-संस्कार अपने-आप में दिखा रहा है। नारायण, संसार में दुःख नाम की वस्तु कहीं नहीं है- न जीने-मरने में, न मिलने-बिछुड़ने में और न ज्ञान-अज्ञान में- परब्रह्म अव्यक्त है और उस अव्यक्त की अभिव्यक्ति यह संसार है। यह परमात्मा का रास है। यह रासलीला जो है वह परमात्मा की अभिव्यक्ति है। मैंने एक घर में देखा- माफ करना देहात की बात है- एक लड़की थी। उसको ब्याह से पहले भी देखा था और बाद में भी। जब उसका ब्याह हो गया और ससुराल से आयी, बड़े घर में ब्याह हुआ, तो गाँव में, घुँघरूदार पायजेब पहनकर आँगन में वह झमाझम चले कि सारा आँगन झंकृत हो जाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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