विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास में श्रीकृष्ण की शोभाभगवान् को बस एक ही तो शौक है कि जब ब्याह पुराना पड़ जाता है तो फिर से कर लेते हैं, अब महाराज आजकल तो स्त्रियाँ ऐसा स्वीकार नहीं करेंगी! पति-पत्नी लड़ते हुए मेरे पास आये-बिलकुल आँखों से झर-झर आँसू गिर रहे थे। पति ने कहा- स्वामीजी, हमको श्राप दे दो, हम मर जायँ, हम जिन्दा नहीं रहना चाहते, घरवाली हमको बहुत परेशान करती है। तो मैंने समझाया-बुझाया, दोनों में मेल-मिलाप करवाया। आखिर शान्ति हुई। तो मैंने कहा कि तुम तो हमारी बेटी सरीखी हो, आओ, हम तुम्हारा फिर से इनसे ब्याह कर दें। बोली- ना-ना-ना; महाराज, अगर फिर से ब्याह करना होगा तो हम इनके साथ हरगिज नहीं करेंगे। परंतु ये जो लक्ष्मीजी हैं न, वे हर बार भगवान् से ही ब्याह करती हैं। देखो; हर सतयुग में समुद्र-मन्थन होता है। लक्ष्मी दूसरी नहीं होती, एक ही होती है। भगवान् क्या करते हैं कि समुद्र-मन्थन के समय लक्ष्मी से कहते हैं कि अब तुम चलो समुद्र में, घण्टे आध-घण्टे के लिए। जब समुद्र-मन्थन होता है तो समुद्र में से फिर वही लक्ष्मी समुद्र की नयी बेटी बन करके, सुकुमारी युवती कन्या बनकर निकलती हैं। तो भगवान् कहते हैं- फिर से ब्याह रचा जायेगा। अब तुम सबके सामने बताओ कि उसी पुरातन पुरुष को पसन्द करती हो कि नहीं? बोलीं- बाबा! करती हैं तो फिर से लक्ष्मी जी यह वैजयन्तीमाला भगवान् को पहनाती हैं। तो यह वैजयन्तीमाला पुरानी रहती है। वह कौस्तुभमणि भी जो उसको समुद्र-मन्थन के समय भगवान् समुद्र में डाल देते हैं। वही फिर जब मन्थन से नयी होकर निकलती है तो उसको नये की तरह धारण करते हैं। कौस्तुभमणि अनित्य नहीं है, वैजयन्तीमाला अनित्य नहीं है, लक्ष्मी अनित्य नहीं है, वह तो है वही-की-वही, लेकिन ये नयी-नयी प्रक्रिया से इनको धारण करते हैं- ‘नूतनं नूतनं पदे पदे’- पद-पद में नवीनता उत्पन्न करने के लिए, स्वादु-स्वादु बनाने के लिए, ऐसा करते हैं। मालां बिभ्रद् वैजयन्तीं – श्रीकृष्ण के गले में वैजयन्तीमाला है, शिर पर मोर मुकुट है। आप जानते ही हैं कि यह मयूर पिच्छ राधारानी के मोर का है। कान में मकराकृति कुण्डल हैं तो वे काम की ध्वजा हैं। श्रीमद्भागवत में साफ ही वर्णन है कि – ‘बिभर्ति साङ्ख्यं योगं च दिव्यमकरकुण्डले’ साङ्ख्य और योग कुण्डल हैं। इसका मतलब यह है कि भगवान् के दो कनभरवा लगे हुए हैं, उनके कान में सिफारिश करते हैं। साङख्य कहता है, देखो। यह विवेकी है, इसको आप अपना लो। उधर योग बोलता है- देखो महाराज इसने प्राणायाम- ध्यान-धारणा-समाधि लगायी है, अब इसको अपना लो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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