विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास में श्रीकृष्ण की शोभायह वामिनीनीति है, त्रयविक्रमी नीति नहीं है। और भगवान् की नीति क्या है? कि प्रत्येक को दिया, और बोले- अरे लो, पूरा लो, लो पूरा! जितना देते हैं, उतना बढ़ता है। यह भगवान् की हँसी उदारदाता है, कृपणदाता नहीं है; कहती है- लो, हम अपने मालिक को ही देते हैं! इस उदारता से हुआ यह कि सबके हृदय में मालिक बैठे गया और जहाँ-जहाँ देखें, वहाँ-वहाँ हँसी। इस प्रकार हँसी की वृद्धि हो गयी!
मालां बिभ्रद् वैजयन्तीम्- श्रीकृष्ण के गले में वैजयन्तीमाला लटक रही है। श्रीकृष्ण के आभूषणों की चर्चा श्रीमद्भागवत में, विष्णुपुराण में बहुत है, वह तो आप सब जानते ही हो। यह वैजयन्तमीमाला जो इस समय श्रीकृष्ण पहने हैं वह श्रीराधारानी की दी हुई है। कब दी? कि जब गोपियों को बरदान में दी हुई रात्रियाँ श्रीकृष्ण के सामने आकर खड़ी हुईं, तब उन्होंने सोचा कि राधारानी मानेंगी नहीं; कहीं ऐसा न हो कि हम गोपियों के साथ रास करें, और राधारानी रूठ जायँ, तब तो रास का मजा बिगड़ जायेगा; तो चलो पहले उनको मनायें पहले आया था कि- योगमायाम् उपाश्रितः अर्थात् सर्वाश्रयोऽपि योगमायां उपाश्रितः श्रीकृष्ण स्वयं सबके आश्रय होने पर भी उन्होंने रास के लिए योगमाया (श्रीराधारानी का आश्रय लिया) तो वे जाकर के राधारानी के साथ बैठ गये। वह तो बैठी थीं- सिंहासन पर और श्यामसुन्दर गये तो नीचे बैठ गये- उपाश्रितः। नीचे बैठ गये, और राधारानी के पाँव छूने लगे। राधारानी ने कहा- प्यारे, क्या करते हो? बोले करते यह है कि आज मैं तुम्हारी शरण में आया हूँ। तुम्हारा आश्रित हूँ। राधारानी बोलीं- अरे बाबा! सारी दुनिया तुम्हारी शरण ले, तुम हमारी शरण में आओ। यह क्या बात? राधाचरणविलोडित रुचिर शिखन्दं हरिं वन्दे। प्यारी जी झुक गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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