विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रथम रासक्रीड़ा का उपक्रमअब देखो, प्रसंग आपको सुनाते हैं। प्रहस्य सदयं गोपीः आत्मारामोऽप्यरीरमत् । ‘आत्मारामोप्यरीरमत्’ का भाव आपको कल सुनाया था। आत्माराम महापुरुष भगवान् से प्रेम क्यों करते हैं? बोले- भगवान् में गुण ही ऐसे हैं। फिर बोले- आत्माराम भगवान् गोपियों से विहार क्यों करते हैं? तो कहा कि गोपियों में वे गुण हैं। गोपियों के गुण पर मुग्ध होकर भगवान् अपनी भगवत्ता को एक तरफ रखकर भी अपने कैशोर्य को सफल करते हैं। दूसरी बात यह हुई कि आत्मारामोऽपि यद्यपि ये आत्माराम हैं, उन्हें किसी के साथ विहार करने की कोई अपेक्षा नहीं है, फिर भी ‘सदयं गोपीप्यरीरमत्’ करुणा के वश हो करके कि गोपियों का दुःख किसी तरह घट जाय, इनकी पीड़ा मिट जाय, इनकी आर्ति उड़ जाय, इसके लिए उनके साथ विहार किया। कल विस्तार से सुनाया था, अब आज इसका एक दूसरा पक्ष जो है उसको सुनाता हूँ। बात यह है कि आनन्द जिसको भी होगा अपने हृदय में होगा, आत्म होगा; आनन्द अनात्म तो कभी होता ही नहीं। तो श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास किया, रमण किया, विहार किया, तो श्रीकृष्ण को गोपियों में से- आनन्द मिला कि गोपियों को कृष्ण में से आनन्द मिला? तो वहाँ यह बताते हैं कि आत्मारामोऽपि- श्रीकृष्ण ने पहले गोपी में आत्मत्व का स्थापन किया। जो आत्मा कृष्णशरीरावच्छिन्न है, वही आत्मा गोप्याकार गोपीशरीरावच्छिन्न है। शुद्ध-बुद्ध-मुक्त-आत्मा श्रीकृष्ण में और वही गोपी में, अनात्मा नाम की कोई वस्तु नहीं। जो आनन्द कृष्णशरीराधार है वही आनन्द गोपीशरीरधार है; अर्थात् आत्मा ही आत्मा है। एक सच्चिदानन्दघन परमात्मा ही परमात्मा है- इस दृष्टि का परित्याग किये बिना, श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ विहार किया, रासलीला की, और गोपियों को आनन्द दिया। रासलीला में जो नृत्य हुआ उसे हल्लीसक नृत्य बोलते हैं। नाट्यशास्त्र में इसका वर्णन आता है; नाचने वाली नटी अनेक और नट एक। जैसे हमारे हृदय में वृत्तियाँ अनेक, श्यामाकार वृत्तियाँ अनेक, श्यामाकार वृत्ति, गौराकार वृत्ति, प्रेमाकार वृत्ति, श्रृंगारकार वृत्ति, ललित वृत्ति, छवि की वृत्ति, नीलिका वृत्ति, रसिका वृत्ति, धृता वृत्ति, चलिका वृत्ति, ये सब हमारे अंतःकरण में है और आत्मा एक है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज