विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रथम रासक्रीड़ा का उपक्रमश्रीकृष्ण तो मजा ही ले रहे थे क्योंकि गोपियों के दिल की बात तो उनको मालूम थी और गोपियों को अपने प्रेम को जाहिर करना कोई जरूरी नहीं था। बहुत प्रेम दिखाना, प्रेम को बहुत जाहिर करना, वह प्रेम का विकार ही है। वह तो अपने प्रियतम पर एहसान लादना है। यह तो अधूरेपन का ही लक्षण है। तब फिर गोपियों ने यह संवाद क्यों किया? गोपियों ने यह संवाद अपनी इच्छा से नहीं किया, कृष्ण की इच्छा से यह बात चली, क्योंकि कृष्ण का अवतार तो भक्तिमार्ग की, प्रेममार्ग की स्थापना के लिए हुआ है। भगवान के प्रति लोगों का प्रेम बढ़े तो कैसे प्रेम बढ़े य जाहिर करना जरूरी था। लोगों के हृदय में श्रीकृष्ण का प्रेम, रागभक्ति कैसी होनी चाहिए इसका नमूना गोपियों के द्वारा दिखाया। कृष्ण को तो पहले से ही मालूम था- कि गोपियों का कितना प्रेम है और गोपियों को अपना प्रेम जाहिर करने से डर ही लगता था कि प्रेम जाहिर करेंगे तो हमें भी अभिमान होगा, प्रियतम के ऊपर भार होगा, और प्रेम झूठा हो जायेगा पर श्रीकृष्ण की इच्छा थी कि जरूर बोलें, क्योंकि इनके बोलने से इनके हृदय का भाव संसार में प्रकट हो जायेगा और सब लोग ऐसी ही भक्ति करेंगे। तो- इतनी गोपियाँ और उनकी इतनी विकलता को सुनकर- ‘विक्लवितं’ शब्द का अर्थ है- विकलता। गोपियों ने प्रेम की विकलता से ये बातें कही थीं, होश-हवाश में यह बात नहीं कही थी। विक्लविंत शब्द का अर्थ श्रीधरस्वामी ने किया है- ‘प्रेमपारवश्यम् प्रलपितम्’ प्रेम के पराधीन होकर बेहोशी में जैसे कोई बोले- ऐसे गोपियाँ प्रेम-परतंत्र होकरके, प्रेम से परवस होकरके, प्रेमाधीन हो करके, विवश होकरके अन्जान में ही ये सब बोल गयीं और योगेश्वर श्रीकृष्ण ने उसको सुना- ‘श्रुत्वा योगेश्वरेश्वरः।’ एक दिन एक गोपी से भगवान श्रीकृष्ण ने पूछा-क्यों भूल गयीं उस दिन कैसी विकलता थी। बोली- विकलता नहीं थी, तुम्हारे ऊपर गुस्सा था, तुम हमारे साथ छेड़छाड़ कर रहे थे तो क्या हम गुस्सा नहीं करती? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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