विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों में दास्य का हेतु-3अपने कृष्णसार पतियों के साथ आ-आ करके अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से, प्रेमभरी चितवन से श्यामसुन्दर का दर्शन करती हैं, डरती नहीं है, और श्यामसुन्दर बड़े गौर से उनके आँख की ओर देखते हैं। गोपियाँ कहती हैं- विधाता ने इनके पलक नहीं बनायी, कितनी बड़ी-बड़ी आँखें बनायी हैं, और इनके पति कितने अनुकूल निकले कि इनके साथ जाते हैं, ये धन्य हैं, ये धन्य हैं। अब देखो इसमें व्यंग्य क्या हुआ कि वृक्ष को तो रोमाञ्चित कर दिया। वृक्ष का धर्म क्या रोमाञ्चित होना है? गाय का धर्म क्या मनुष्य के सौन्दर्य पर मोहित होना है? हरिणी का क्या धर्म है कि मनुष्य के सौन्दर्य पर मोहित हो जाय? वृक्ष का क्या धर्म है कि वह मधुक्षरण करे? तो तुम जब गाय का धर्म बिगाड़ देते हो, पेड़ का धर्म बिगाड़ देते हो, हरिणी का धर्म बिगाड़ देते हो, सबको धर्मभ्रष्ट कर दिया तुमने, स्वभावभ्रष्ट हो गये सब। विधाता ने तुमको बनाया ही इसलिए है कि हरिणी भी अपना धर्मपालन न करे, लतावृक्ष भी अपना धर्मपालन न करें, पक्षी-पक्षिणी भी अपना धर्म पालन न करें, और गाय-बछड़ा भी अपना धर्म पालन न करें, यह तुम्हारा सौन्दर्य प्रकट ही इसलिए हुआ है कि संसार के लोग संसार का भोग छोड़ करके, अर्थ छोड़कर के यहाँ कर्तव्य धर्म- का बन्धन छोड़ करके और मोक्ष की आकांक्षा छोड़ करके, तुम्हारी वंशीध्वनि पर लुभा जायँ, और अपने लौकिक, पारलौकिक, पारमार्थिक धर्म से भ्रष्ट होकर के और तुम्हारे फन्दे में फँस जायँ। फिर हमारे लिए उलाहना क्यों? श्रीकृष्ण ने कहा- बाबा! हार मान ली तुमलोगों से। गोपियों, बोलने में तो तुम्हारा सानी, तुम्हारी बराबरी का कोई नहीं। लासानी हो तुम। हार गया तुम्हारी मुखरता के सामने! जो कहो सो करें। गोपियों ने कहा- नहीं-नहीं श्रीकृष्ण, हम बदसलूक नहीं हैं। हमारे प्राणों में पीड़ा है। हमारा मन तुम्हारे लिए विह्वल है, आर्त है। हमें भय है कि कहीं तुम छोड़ न दो, हमारे हृदय में पीड़ा है, आर्ति है, कि तुम हमारे प्यारे होकर ऐसा क्यों बोल रहे हो? यह तो रोगी जैसे बर्राता है वैसे हम बर्रा रही हैं। हम तो चाहती हैं कि तुम हमारा रोग दूर कर दो! रोगी होकर हम आयी हैं। बोले- अच्छा गोपियों! क्या करें? बोलीं- पहली बात है कि अपना हाथ हमारे सिर पर रखो तो हम यह समझ जायँ कि तुम हमें अपनी समझते हो। दूसरी बात यह कि अपना हाथ हमारे हृदय पर रखो। इससे क्या होगा? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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