विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों में दास्य का हेतु-2गोपियाँ बोलती हैं-
अरे बाबा, वह स्त्री कौन है जो तुमसे सम्मोहित न होवे। उसका नाम स्त्रीलिंगमात्र होना चाहिए जैसे कि श्रुति, ऋचा, नाड़ी, नादी, देवी-सभी तो तुम पर मोहित हैं। फिर हम तो साक्षात् स्त्री ही हैं। स्त्रीराधा पुरुषैककृष्णः विजिज्ञेयो व्रजमध्यगाः ब्रज में तो एक पुरुष है श्रीकृष्ण, बाकी सब स्त्री हैं। ये दाढ़ी-मूँछ कपटभर हैं, यह केवल नाटक है। नाटक में जैसे स्त्री पुरुष बन जाय तो जल्दी पहचान में नहीं आती, तो यह भी अभीसार की एक प्रक्रिया है; मिलने के लिए जाने को वेश बदलना जैसे एक प्रक्रिया है, उसी प्रकार यही स्त्रियाँ ही अभिसार का रूप लेकर के पुरुष बनी हुई हैं। समग्र सृष्टि के जीव उसी एक परमेश्वर से मिलने के लिए अनेक वेश बदलकर मिलने जा रहे हैं। कहहु सखी असको तनधारी। जो न मोह यह रूप निहारी ।। उसी को देखने के लिए सब व्याकुल हैं और मिलने के लिए तरह-तरह का वेश बनाकर, कैसे उसको हँसावें, कैसे उसको रिझावें, उसी की तरफ जा रहे हैं- का स्त्र्यंग ते। अंग, अंग माने प्यारे कतलपदायतवेणुगीत सम्मोहिताऽऽर्यचरितात्र चलेत्त्रिलोक्याम् ।। ‘त्रैलोक्यसौभागमिदं रूपं’ त्रैलोक्य में जितनी सुन्दरता है- गुलाब में सुन्दरता कहाँ से आयी? कमल में सौन्दर्य कहाँ से आया? बेला- चमेली में सुगन्ध कहाँ से आयी? चंद्रमा में आह्लाद कहाँ से आया? वायु में शीतलता कहाँ से आयी? त्रिलोकी में जितनी सुन्दरता है यह सब भगवान् की झरी-परी सुन्दरता है, यह उसका एक बिन्दु है। ‘त्रैलोक्यसौभगं-यस्मात्’ – त्रिलोकी में जहाँ से सुन्दरता आयी है, वह प्रकट हुआ व्रज में, वह वृन्दावन-बिहारी, वह राधारमण, व गोपीजनवल्लभ, वह बाँके-बिहारी होकर के आया। अब कौन है दुनिया में ऐसा जो उसको देखकर के अपने बनठन में फँसा रह जाय? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत, 20.29, 40
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