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रासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
गोपियों में दास्य का हेतु-1
नारायण। गोपियाँ वर्णन करती हैं कि बाबा, तुम्हें कुछ देने की जरूरत थोड़े ही है, हम तो देख-देखके ही बेदाम की गुलाम हो गयी हैं। आप लोगों ने गोपीगीत में पढ़ा होगा-
- जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इंदिरा शश्वदत्र हि ।
- दयति दृश्यतां दिक्षु तावकाः त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ।।
- शरदुदाशये साधुजातसत् सरसिजोदर श्रीमुषा दृषा ।
- सुरतनाथ तेऽशुल्कतसिका वरदनिघ्नतो नेह किं वधः ।।
जहाँ ले-दे के प्रेम होता है वह तो सौदा हुआ, प्रेम काहे का? गोपियों ने कहा नहीं- बाबा, यह बात नहीं है, तुमने तो हमको दे-दे करके फँसाया है, क्या दिया?
- वीक्ष्यालकावृतमुखं तव कुण्डलश्रीगण्डस्थलाधरसुधं हसितावलोकम् ।
- दत्ताभयं च भुजदण्डयुगं विलोक्य वक्षः श्रियैकरमणं च भवाम दास्यः ।।
हम तो देख-देख के बिना दाम की गुलाम हो गयीं- ‘अशुल्कदासिका। वीक्ष्यालकावृतमुखं’ पहले तो तुम्हारे अलकों से ढके मुख को देखा। भखा। भगवान ने बालों को इसीलिए बनाया है क्योंकि ये असुन्दर को भी सुन्दर बनाते हैं। हमने देखा एक श्रीमती जी थीं; उनके मुँह का रंग इतना काला था कि पाउडर लगाकगवान ने बालों को इसीलिए बनाया है क्योंकि ये असुन्दर को भी सुन्दर बनाते हैं। हमने देखा एक श्रीमती जी थीं; उनके मुँह का रंग इतना काला था कि पाउडर लगाकर भी सुन्दर नहीं लगता था। उसके लिए बचपन में एक दोहा पढ़ा था; हमारे एक मित्र थे, उनके चाचा बड़े कवि थे। उन्होंने कई कुण्डलियाँ लिखी थीं। उसमें एक कुण्डली आयी थी। पहली बार जब मैं उसके घर गया था तब- हमारी उम्र कोई बारह-तेरह वर्ष की रही होगी। तब उन कुण्डलियों को पढ़ के हँसी बहुत आती थी पर याद सभी हो गयी थी। उनमें एक थी-
- करिया मुँह पर पाउडर की शोभा कस सरसाय।
- मनहुँ धुवानी भीत पर कलई दीन्ह कराय ।।
तो जब बालों को दोनों तरफ लटका लेते हैं तो मुँह कितना भी काला हो- बाल से ज्यादा काला तो होता नहीं- इसलिए गोरा दिखने लगता है।
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