विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों में दास्य का हेतु-1भगवान ने देखा कि संसार के जीव छोटी-छोटी कामना में फँस जाते हैं; इनको तो संसार का भोग चाहिए, और वह भी पांचों इंद्रियों का नहीं, एक-एक इन्द्रिय के भोग में ही वे गिरते दिखाई देते हैं। इसलिए भगवान ने अपने को सर्वांग-सुंदररूप में प्रस्तुत किया। इनके साथ अपने को जोड़ लो, भक्ति हो जाएगी, तुम्हारे विकार भी चिन्मय हो जायेंगे- इसी में जीवन की सफलता है। तीव्रकामतप्तात्मनां पुरुषभूषण देहि दास्यम् । त्वत्सुन्दरस्मितनिरीक्षणतीव्रकामतप्तात्मनां । अर्थात् हमारी अंतरात्मा तुम्हारे प्रति तीव्रकाम से जल रही है और हमको अपनी सेवा दो, सेवा दो, सेवा दो; उस दिन तुम लोगों ने भीख नहीं माँगी थी समझने में गलती हो गयी; हमने यह नहीं कहा था। फिर क्या कहा था? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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