विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास के हेतु, स्वरूप और कालभगवान ने भगवद्धर्म का पालन किया। भगवद् धर्म क्या है? प्रेम के अधीन हो जाना। यह भगवद्धर्म है। प्रेमी के सामने मुक्त भगवान ही बद्ध हो जाता है। विरक्त भगवान भी रागी हो जाता है। पूर्ण भगवान भी नन्हा मुन्ना हो जाता है। अभोक्ता भगवान भी भोक्ता हो जाता है, अकर्ता भगवान भी कर्ता हो जाता है। भगवान उसको कहते हैं जो प्रेम परवश होवे। गोपियों के प्रेम के अधीन होकर उनके साथ रास करना यह भगवान का धर्म है। यदि भगवान डर जायें कि हमारी बदनामी होगी या सोंचे कि हम तो नित्य-तृप्त हैं, नित्यानन्द में मग्न हैं, हमको गोपियों के साथ नृत्य करने की क्या आवश्यकता; तो भगवान में असंगता तो रही, वैराग्य तो रहा लेकिन अभिमान भी हो गया। भगवान आनन्द-स्वरूप तो हैं परंतु उसका आस्वादन तभी होगा जब अपने बड़प्पन का अभिमान छोड़कर छोटे के साथ मिलेंगे। इसलिए रास के द्वारा भगवान प्रेमपरवश होते हैं, इस मर्यादा की स्थापना हुई। अब देखो- दूसरी बातें, रस- मर्यादा का पालन किया भगवान ने। रस-मर्यादा क्या है? रस-मर्यादा यह है कि अपने हृदय में जो रस है उसको दूसरे के हृदय में स्थापित कर दिया जाए। यह रस की मर्यादा है। जैसे आपके घर में कभी मिठाई बनती हैं, बूँदी बनाते हैं, तो पहले फीकी बूँदी को घी में तलते हैं और जब चासनी में डाल देते हैं तब वह बूँदी भी रसीली बना दे, यह रस की मर्यादा है। कड़ुवे को मीठा बना दें। आज हमारे पास करैले का मुरब्बा भेजा है। तो रस की मर्यादा यह है कि वह कड़वे करेले को भी मीठा बना दे। आप कभी बनारस गये होंगे तो वहाँ बाँस का मुरब्बा बनता है और बाजार में बिकता है। तो रस की मर्यादा यह है कि बाँस जैसी सूखी नीरस लकड़ी को खाने लायक बना देता है। तो यह भगवान का रास क्या है? कि जो भगवद् रस है, भगवान का रस है, उसको गोपियों के हृदय में स्थापित करना, जनता के हृदय में स्थापित करना; उस रस का साधारणीकरण कर देना, कि जो इसको पढ़ेगा, सुनेगा, देखेगा उसका हृदय भी रसमय बन जाएगा। यह रस मर्यादा की पुष्टि हुई। रसमर्यादा की पुष्टि के लिए भगवान ने रास किया। श्रीवल्लभाचार्य जी महाराज ने रास का प्रयोजन ही यही बताया है कि ब्रह्मानन्द भगवान में हमेशा रहता है क्योंकि स्वयं ब्रह्म है। पर जब की साधन में थक जाता है और उसको वे पुष्टि देना चाहते हैं तो भगवान के पास ब्रह्मानन्द तो स्वतः सिद्ध है तो स्वतः सिद्ध ब्रह्मानन्द से भी बड़ा जो भजनानन्द है, भक्ति आनन्द, प्रेम आनन्द, रसानन्द, उसको गोपियों के हृदय में स्थापित करने के लिए भगवान रासलीला कहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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