योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 76

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

Prev.png

तेरहवाँ अध्याय
कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह


जब उन सबने सुना कि अर्जुन उनकी राजकुमारी को बलपूर्वक हर ले गया तो उनकी आँखों से लहू टपकने लगा और सब बदला लेने के लिए तत्पर दीख पड़ने लगे। इतने में बलराम आ पहुँचे और पूछा कि आप सब लोग ऐसे उत्तेजित क्यों दीख पड़ते हैं, किन्तु कृष्णचन्द्र चुपचाप बैठे हैं। फिर उनसे इसका कारण पूछा, "हे कृष्ण, तुम चुप क्यों हो? तुम्हारे ही कारण तो हम सबने अर्जुन का इतना सम्मान किया और आगत का स्वागत किया। अब प्रकट हुआ कि वह इस सम्मान और स्वागत के योग्य न था। उसने हमारा बड़ा अपमान किया। हमारी बहन का उसने जो अपमान किया है वह सह्य नहीं। यह कैसे हो सकता है कि हम इस अपमान को चुपचाप सहन कर लें! हम इसका बदला लेंगे और जब तक पृथ्वी को कौरवों से शून्य नहीं कर लेंगे, दम नहीं लेंगे।"

जब चारों ओर से यही आवाज गूँज उठी और यादव मरने-मारने पर बद्धपरिकर हो गए तो कृष्ण ने अपना मौन तोड़ा और बोले, "हे भाइयों, आपका यह विचार ठीक नहीं कि अर्जुन ने हमारा अपमान किया। मेरी समझ में तो उसने हमारी प्रतिष्ठा ही बढ़ाई है। वह जानता था कि हमारे वंश में बदला लेकर लड़की देना निषिद्ध है। स्वयंवर में सफलता की उसे पूरी आशा नहीं थी। उसके पद और वीरता से यह संभव नहीं था कि वह आपसे कन्यादान माँगता। अतएव उसने क्षत्रियों की चाल चली। जैसे सुभद्रा परम रूपवती और गुण-सम्पन्ना है; वैसे ही अर्जुन भी प्रत्येक प्रकार से उसके योग्य है। भरत का वंशज, शान्तनु का पोता और कुंतिभोज का नाती वह किसी प्रकार उसके अयोग्य नहीं कहा जा सकता। मुझको आज सारी पृथ्वी पर उसके समान कोई वीर दिखाई नहीं देता। किसका हौसला है जो लड़ाई में अर्जुन का मुकाबला कर सके। उससे बाजी मार के जाना कठिन है, उसकी वीरता अपने आपमें आदर्श है। इसलिए मेरी सम्मति है कि इसमें उत्तेजना से काम नहीं लिया जाय वरन् उसे बुलाकर उसका विवाह सुभद्रा से कर दिया जाय। यदि हम उससे लड़े और पराजित हुए तो इसमें हमारी हँसी होगी। मेल कर लेने में कोई हँसी नहीं।"

सारांश यह कि इस प्रकार कृष्ण ने अपने भाइयों का क्रोध ठंडा किया। उनकी बात से सब सहमत हुए और अर्जुन को बुलाकर उनके साथ सुभद्रा का विवाह कर दिया।

अर्जुन सुभद्रा के साथ विवाह कर कुछ दिन तक वहाँ रहा और बारह वर्ष पूरे होने पर अपनी धर्मपत्नी को लेकर इन्द्रप्रस्थ चला गया।

जब अर्जुन के इन्द्रपस्थ पहुँचने की खबर आई तो कृष्ण अपने भाई-बंधुओं सहित बड़ी धूमधाम से सुभद्रा का दहेज लेकर चले। इस दहेज में युधिष्ठिर आदि के लिए पृथक-पृथक उत्तम-उत्तम भेंट थी। इन्द्रप्रस्थ वालों ने जिस तरह कृष्ण और उसके साथियों का स्वागत किया, वह निम्न वर्णन से भली प्रकार प्रकट होता है।

राजकुमार नकुल और सहदेव ने नगर से बाहर जाकर मेहमानों का स्वागत किया और फिर उन्हें बड़ी धूमधाम से गाजे-बाजों और पताकाओं के साथ शहर में ले आये। शहर की गलियाँ इस उत्सव के लिए साफ की गई और उन पर छिड़काव किया गया। सब बाजार, गली और कूचे रंग-बिरंगे फूलों और हरियाली से सजे हुए थे। इन फूलों पर चन्दन का छिड़काव हो रहा था जिससे चारों ओर सुगन्धि फैल रही थी। नगर के हर कोने में सुगन्धि जलाई गई थी जिससे कहीं दुर्गन्ध न रहे। नगर के बाहर विद्वान ब्राह्मण स्वागत के लिए गए। सबने रीति के अनुसार कृष्ण की पूजा की। स्वयं महाराज युधिष्ठिर आदरपूर्वक आगे बढ़े और उन्हें गले लगाकर अन्तःपुर में गए।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः