योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
7. पुराणों की प्राचीनता
छान्दोग्योपनिषद में, जो दस उपनिषदों के अन्तर्गत है और जिसे श्री स्वामी शंकराचार्य, श्री स्वामी दयानन्द और अन्य विद्वानों ने प्राचीन माना है, एक स्थान पर भिन्न-भिन्न विद्याओं का वर्णन करते हुए इस प्रकार का लेख है-
(1) अर्थात हे भगवन! मैं ऋग, यजुः, साम और अथर्व को जानता हूँ और इसके अतिरिक्त इतिहास और पुराण से भी भिज्ञ हूँ। (2) एक स्थान पर शतपथ ब्राह्मण[3] में कहा गया है-
अर्थ-ऋग, यजुः, साम अथर्ववेद, इतिहास-पुराण, उपनिषद, सूत्र, श्लोक और उनके व्याख्यान आदि। (3) तैत्तिरीय आरण्यक में दूसरे आरण्यक के नवें श्लोक में लिखा है-
अर्थात - वेद, इतिहास, पुराण गाथा आदि। (4) इसी प्रकार मनुस्मृति में तीसरे अध्याय के 232 वें श्लोक[4] में भी आख्यान, इतिहास और पुराण शब्द कई स्थान पर आयें हैं। रामायण, महाभारत और पुराणों के पढ़ने से विदित होता है कि पुराकाल में इतिहासवेत्ताओं और इतिहासलेखकों के अतिरिक्त एक ऐसी मंडली होती थी जिनका कर्तव्य यही होता था कि वे राजदरबार में प्राचीन घटनाओं और राजा-महाराजाओं तथा वीर योद्धागणों के चरित्र सुनाया करें। महाभारत में स्थान-स्थान पर आया है कि सूत महाराज ने अमुक-अमुक वृत्तान्त वर्णन किया। (5) संस्कृत का प्रसिद्ध कोश प्रणेता अमरसिंह पुराण शब्द की व्याख्या करता हुआ कहता है कि पुराण के पाँच लक्षण हैं। यों कहिये कि पुराणों में पाँच प्रकार के विषय होते हैं।
अर्थात- सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन, सृष्टि-विशेष का वृतान्त, प्रसिद्ध घरानों का इतिहास, भिन्न-भिन्न समय का वर्णन और महापुरुषों के जीवनचरित्र। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अथर्ववेद-15/6/4
- ↑ छान्दोग्योपनिषद् 7/1/2
- ↑ शतपथ ब्राह्मण, 14-6-10-6
- ↑ स्वाध्यायं श्रावयेत्पित्र्ये धर्मशास्त्रणि चैव हि। आख्यानानीतिहासांश्च पुराणनानि खिलानि च।।
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