योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 29

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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7. पुराणों की प्राचीनता


प्राचीन ग्रंथों, ब्राह्मण, उपनिषद, रामायण, महाभारत और पौराणिक समय के साहित्य में इस विषय के अनेक प्रमाण उपस्थित हैं। वैदिक साहित्य में भी जहाँ-जहाँ भिन्न-भिन्न विद्याओं और शास्त्रों का वर्णन किया है वहाँ पुराण और इतिहास शब्द भी मिलता है।[1] इससे यह परिणाम निकलता है कि उस समय पुराण और इतिहास एक पृथक लेखन विद्या का नाम था जिसे आजकल ऐतिहासिक साहित्य कहते हैं। प्रमाण के लिए हम यहाँ कुछ वाक्य उद्धत करते हैं।

छान्दोग्योपनिषद में, जो दस उपनिषदों के अन्तर्गत है और जिसे श्री स्वामी शंकराचार्य, श्री स्वामी दयानन्द और अन्य विद्वानों ने प्राचीन माना है, एक स्थान पर भिन्न-भिन्न विद्याओं का वर्णन करते हुए इस प्रकार का लेख है-

स होवाच। ऋग्वेदं भगवोऽध्येमि यजुर्वेदं
सामवेदमाथर्वणचतुर्थमितिहासपुराणं पन्जमम्।[2]

(1) अर्थात हे भगवन! मैं ऋग, यजुः, साम और अथर्व को जानता हूँ और इसके अतिरिक्त इतिहास और पुराण से भी भिज्ञ हूँ।

(2) एक स्थान पर शतपथ ब्राह्मण[3] में कहा गया है-

ऋग्वेदों यजुर्वेदों सामवेदोऽथर्वाग्ङिरस इतिहासः पुराणं विद्या उपनिषदः श्लोकाः सूत्राण्यनुव्याख्यानानि व्याख्यातानि।।

अर्थ-ऋग, यजुः, साम अथर्ववेद, इतिहास-पुराण, उपनिषद, सूत्र, श्लोक और उनके व्याख्यान आदि।

(3) तैत्तिरीय आरण्यक में दूसरे आरण्यक के नवें श्लोक में लिखा है-

ब्राह्मणीनीतिहासान् पुराणानि कल्पान् गाथा नारांशसीः।

अर्थात - वेद, इतिहास, पुराण गाथा आदि।

(4) इसी प्रकार मनुस्मृति में तीसरे अध्याय के 232 वें श्लोक[4] में भी आख्यान, इतिहास और पुराण शब्द कई स्थान पर आयें हैं। रामायण, महाभारत और पुराणों के पढ़ने से विदित होता है कि पुराकाल में इतिहासवेत्ताओं और इतिहासलेखकों के अतिरिक्त एक ऐसी मंडली होती थी जिनका कर्तव्य यही होता था कि वे राजदरबार में प्राचीन घटनाओं और राजा-महाराजाओं तथा वीर योद्धागणों के चरित्र सुनाया करें। महाभारत में स्थान-स्थान पर आया है कि सूत महाराज ने अमुक-अमुक वृत्तान्त वर्णन किया।

(5) संस्कृत का प्रसिद्ध कोश प्रणेता अमरसिंह पुराण शब्द की व्याख्या करता हुआ कहता है कि पुराण के पाँच लक्षण हैं। यों कहिये कि पुराणों में पाँच प्रकार के विषय होते हैं।

सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
वंशानुचरितन्जैव पुराणं पन्जलक्षमण्।।

अर्थात- सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन, सृष्टि-विशेष का वृतान्त, प्रसिद्ध घरानों का इतिहास, भिन्न-भिन्न समय का वर्णन और महापुरुषों के जीवनचरित्र।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अथर्ववेद-15/6/4
  2. छान्दोग्योपनिषद् 7/1/2
  3. शतपथ ब्राह्मण, 14-6-10-6
  4. स्वाध्यायं श्रावयेत्पित्र्ये धर्मशास्त्रणि चैव हि। आख्यानानीतिहासांश्च पुराणनानि खिलानि च।।

संबंधित लेख

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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