विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याययदा ते मोहकलिलं बुद्धिव्र्यतितरिष्यति। जिस काल में तेरी (प्रत्येक साधक की) बुद्धि मोहरूपी दलदल को पूर्णतः पार कर लेगी, लेशमात्र भी मोह न रह जाय- न पुत्र में, न धन में, न प्रतिष्ठा में-इन सबसे लगाव टूट जायेगा, उस समय जो सुनने योग्य है उसे तू सुन सकेगा और सुने हुए के अनुसार वैराग्य को प्राप्त हो सकेगा अर्थात् उसे आचरण में ढाल सकेगा। अभी तो जो सुनने लायक है, उसे न तो तू सुन पाया है और आचरण का तो प्रश्न ही नहीं खड़ा होता। इसी योग्यता पर पुनः प्रकाश डालते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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