विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्यायश्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला। अनेक प्रकार के वेदवाक्यों को सुनकर विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मस्वरूप में समाधिस्थ होकर अचल-स्थिर ठहर जायेगी, तब तू समत्व योग को प्राप्त होगा। पूर्ण सम स्थिति को प्राप्त करेगा, जिसे ‘अनामय परमपद’ कहते हैं। यही योग की पराकाष्ठा है और यही अप्राप्य की प्राप्ति है। वेदों से तो शिक्षा मिलती है; किन्तु श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘श्रुतिविप्रतिपन्ना’- श्रुतियों के अनेक सिद्धान्तों को सुनने से बुद्धि विचलित हो जाती है। सिद्धान्त तो अनेकों सुने, लेकिन जो सुनने योग्य है लोग उससे दूर ही रहते हैं। यह विचलित बुद्धि जिस समय समाधि में स्थिर हो जायेगी, तब तू योग की पराकाष्ठा अमृत पद को प्राप्त करेगा। इस पर अर्जुन की उत्कण्ठा स्वाभाविक है कि वे महापुरुष कैसे होेते हैं जो अनामय परमपद में स्थित हैं, समाधि में जिनकी बुद्धि स्थिर है? उसने प्रश्न किया-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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