विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दपंचदश अध्यायमहापुरुषों ने संसार को विभिन्न दृष्टान्तों से समझाने का प्रयास किया है। किसी ने इसी को भवाटवी कहा, तो किसी ने संसार-सागर कहा। अवस्थाभेद से इसी को भवनदी और भवकूप भी कहा गया और कभी इसकी तुलना गोपद से की गयी अर्थात् जितना इन्द्रियों का आयतन है, उतना ही संसार है और अन्त में ऐसी भी अवस्था आयी कि ‘नामु लेत भवसिन्धु सुखाहीं।’[1]- भवसिन्धु भी सूख गया। क्या संसार में ऐसे समुद्र हैं? योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भी संसार को समुद्र और वृक्ष की संज्ञा दी। अध्याय बारह में उन्होंने कहा-जो मेरे अनन्य भक्त हैं, उनका संसाद-समुद्र से शीघ्र ही उद्धार करनेवाला होता हूँ। यहाँ प्रस्तुत अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं कि संसार एक वृक्ष है, उसको काटते हुए ही योगीजन उस परमपद को खोजते हैं। देखें- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रामचरितमानस, 1/24/4
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