विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
अनुराग के प्रथम चरण में पारिवारिक मोह बाधक बनता है। पहले मनुष्य चाहता है कि वह उस परम सत्य को प्राप्त कर ले; किन्तु आगे बढ़ने पर वह देखता है कि इन मधुर सम्बन्धों का उच्छेद करना होगा, तब हताश हो जाता है। वह पहले से जो कुछ धर्म-कर्म मानकर करता था, उतने में ही सन्तोष करने लगता है। अपने मोह की पुष्टि के लिये वह प्रचलित रूढ़ियों का प्रमाण भी प्रस्तुत करता है- जैसा अर्जुन ने किया कि कुलधर्म सनातन है। युद्ध से सनातन-धर्म का लोप होगा, कुलक्षय होगा, स्वैराचार फैलेगा। यह अर्जुन का उत्तर नहीं था, बल्कि सद्गुरु के सान्निध्य से पूर्व अपनायी गयी एक कुरीति मात्र थी। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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