यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दउपशमउत्तम अधिकारी के प्रति ही उन्होंने उसे व्यक्त किया। श्रीकृष्ण ने बार-बार कहा कि तुम अतिशय प्रीति रखनेवाले भक्त के प्रति हित की इच्छा से कहता हूँ। यह अति गोपनीय है। अन्त में उन्होंने कहा- जो भक्त नहीं हो तो प्रतीक्षा करो, उसको रास्ते पर लाओ, फिर उसी के लिये कहो। यही मनुष्य मात्र के लिये यथार्थ कल्याण का एकमात्र साधन है, जिसका क्रमबद्ध वर्णन श्रीकृष्णोक्त गीता है।
तद्विद्वि प्रणिपातेन प्ररिप्रश्नेन सेवया।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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