विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टम अध्यायसातवें अध्याय के अन्त में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि पुण्यकर्म (नियत कर्म, आराधना) को करनेवाले योगी सम्पूर्ण पापों से छूटकर उस व्याप्त ब्रह्म को जानते हैं अर्थात् कर्म कोई ऐसी वस्तु है, जो व्याप्त ब्रह्म की जानकारी दिलाता है। उस कर्म को करनेवाले व्याप्त ब्रह्म को, सम्पूर्ण कर्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण अधिदैव, अधिभूत और अधियज्ञसहित मुझकों जानते हैं। अतः कर्म कोई ऐसी वस्तु है, जो इन सबसे परिचय कराता है। वे अन्तकाल में भी मुझको ही जानते हैं। उनकी जानकारी कभी विस्मृत नहीं होती है। इस पर अर्जुन ने इस अध्याय के प्रारम्भ में ही उन्हीं शब्दों को दुहराते हुए प्रश्न रखा- अर्जुन उवाच हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत तथा अधिदैव किसे कहा जाता है?
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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