यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 870

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

उपशम

“महापुरुष ने कहा”-ऐसा कहकर इन व्यवस्थाओं के लिये महापुरुषों की दुहाई भी देते हैं। वे महापुरुष की वास्तविक क्रिया को तोड़-मरोड़कर उसे भ्रामक बना देते हैं। वेद, रामायण, महाभारत, बाइबिल, कुरान सबके प्रति पूर्वाग्रहयुक्त धूमिल धारणाएँ शेष हैं। बाह्य धरातल पर जीवनयापन करनेवाला समाज उनके कथन का स्थूल आशय ही ग्रहण कर पाताहै। इसीलिये भगवान श्रीकृष्ण ने शाश्वत धाम, अनन्त जीवन, सदा रहनेवाली शान्ति प्रदायिनी गीता शास्त्र को भौतिक व्यवस्थाओं से पृथक् किया। महाभारत का बृहत् इतिहास तथा गौरवशाली संस्कृति शास्त्र है। उन्होंने इस विशाल इतिहास के मध्य इसका गायन किया, जिससे भविष्य में आनेवाली समस्त पीढ़ियाँ इस धर्मशास्त्र को धार्मिक धरातल पर यथावत समझ सकें। कालान्तर में महर्षि पतंजलि इत्यादि अनेक महापुरुषों ने भी परमश्रेय की विधि को सामाजिक व्यवस्था से हटाकर अलग प्रस्तु किया।

गीता मनुष्य मात्र के लिये- भगवान् ने इस धर्मशास्त्र का उपदेश ‘प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते’- (गीता, 1/20)- ठीक शस्त्र-संचालन के समय किया क्योंकि वह भली प्रकार जानते थे कि भौतिक संसार में कभी शान्ति और सुख होता ही नहीं। अरबों लोगों की आहुति के उपरान्त भी जो विजेता होंगे, वह भी विफल मनोरथ और अन्ततः उदास ही होंगे, इसलिये उन्होंने ऐसे शाश्वत युद्ध का परिचय गीता के माध्यम से दिया, जिसमें एक बार विजय हो जाने पर सदा रहनेवाली विजय, अनन्त विजय और अक्षय धाम है जो मानव मात्र के लिये सदैव सुलभ है, जो क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ की लड़ाई है, प्रकृति और पुरुष का संघर्ष है, अन्तःकरण में अशुभ का अन्त और शुभ परमात्मस्वरूप की प्राप्ति का साधन है।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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