यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 38

Prev.png

यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

द्वितीय अध्याय


इन्हीं कुरीतियों में फँसकर मनुष्य पृथक्-पृथक् धर्म, अनेक सम्प्रदाय, छोटे-बड़े गुट और उसंख्य जातियों की रचना लेता है। कोई नाक दबाता है, तो कोई कान फाड़ता है। किसी के छूने से धर्म नष्ट होता है, तो कहीं रोटी-पानी से धर्म नष्ट होता है। तो क्या अछूत या छूने वालों का दोष है? कदापि नहीं! दोष हमारे भ्रमदाताओं का है। धर्म के नाम पर हम कुरीति के शिकार हैं, इसलिये दोष हमारा है।

महात्मा बुद्ध के समय में केश-कम्बल एक सम्प्रदाय था, जिसमें केश को बढ़ाकर कम्बल की तरह प्रयोग करने को पूर्णता का मानदण्ड माना जाता था। कोई गोव्रतिक (गाय की भाँति रहने वाला) था, तो कोई कुक्कुरव्रतिक (कुत्ते की तरह खाने-पीने, रहने वाला) था। ब्रह्मविद्या का इनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। सम्प्रदाय और कुरीतियाँ पहले भी थीं, आज भी हैं। ठीक इसी प्रकार कृष्णकाल में भी सम्प्रदाय थे, कुरीतियाँ थीं। उनमें से एकाध कुरीति का शिकार अर्जुन भी था। उसने चार तर्क प्रस्तुत किये- 1. ऐसे युद्ध से सनातन-धर्म नष्ट हो जायेगा, 2. वर्णसंकर पैदा होगा, 3. पिण्डोदक क्रिया लुप्त होगी, और 4. हम लोग कुलक्षय द्वारा महान् पाप करने को उद्यत हुए हैं।


Next.png

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः