विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
महात्मा बुद्ध के समय में केश-कम्बल एक सम्प्रदाय था, जिसमें केश को बढ़ाकर कम्बल की तरह प्रयोग करने को पूर्णता का मानदण्ड माना जाता था। कोई गोव्रतिक (गाय की भाँति रहने वाला) था, तो कोई कुक्कुरव्रतिक (कुत्ते की तरह खाने-पीने, रहने वाला) था। ब्रह्मविद्या का इनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। सम्प्रदाय और कुरीतियाँ पहले भी थीं, आज भी हैं। ठीक इसी प्रकार कृष्णकाल में भी सम्प्रदाय थे, कुरीतियाँ थीं। उनमें से एकाध कुरीति का शिकार अर्जुन भी था। उसने चार तर्क प्रस्तुत किये- 1. ऐसे युद्ध से सनातन-धर्म नष्ट हो जायेगा, 2. वर्णसंकर पैदा होगा, 3. पिण्डोदक क्रिया लुप्त होगी, और 4. हम लोग कुलक्षय द्वारा महान् पाप करने को उद्यत हुए हैं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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