यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 867

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

उपशम

वेद मनु के समक्ष उतरे थे, इन्हें सुनें, यह सुनने योग्य है; किन्तु गीता स्मृति है, सदा स्मरण रखें। यह हर मानव को सदा रहनेवाला जीवन, सदा रहनेवाली शान्ति और सदा रहनेवाली समृद्धि, ऐश्वर्यसम्पन्न जीवन प्राप्त करानेवाला ईश्वरीय गायन है।

भगवान ने कहा- अर्जुन! यदि तू अहंकारवश मेरे उपदेश को नहीं सुनेगा तो विनष्ट हो जायेगा अर्थात गीता के उपदेशों की अवहेलना करनेवाला नष्ट हो जाता है। अध्याय पन्द्रह के अन्तिम श्लोक (15/20) में भगवान ने कहा, ‘इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ।’- यह गोपनीय से भी अति गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया। इसे तत्व से जानकर तू समस्त ज्ञान और परमश्रेय की प्राप्ति कर लेगा। अधयाय सोलह के अन्तिम दो श्लोकों में कहा- ‘यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।’ इस शास्त्रविधि को त्यागकर, कामनाओं से प्रेरित होकर अन्य विधियों से जो भजते हैं उनके जीवन में न सुख है, न समृद्धि है और न परमगति ही है।

तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।’ इसलिये अर्जुन! तुम्हारे कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में यह शास्त्र ही प्रमाण है। इसको भली प्रकार अध्ययन कर, तत्पश्चात् आचरण कर। तुम मुझमें निवास करोगे, अविनाशी पद प्राप्त कर लोगे। सदा रहनेवाला जीवन, सदा रहनेवाली शान्ति और समृद्धि पा लोगे।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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