यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दउपशमवेद मनु के समक्ष उतरे थे, इन्हें सुनें, यह सुनने योग्य है; किन्तु गीता स्मृति है, सदा स्मरण रखें। यह हर मानव को सदा रहनेवाला जीवन, सदा रहनेवाली शान्ति और सदा रहनेवाली समृद्धि, ऐश्वर्यसम्पन्न जीवन प्राप्त करानेवाला ईश्वरीय गायन है। भगवान ने कहा- अर्जुन! यदि तू अहंकारवश मेरे उपदेश को नहीं सुनेगा तो विनष्ट हो जायेगा अर्थात गीता के उपदेशों की अवहेलना करनेवाला नष्ट हो जाता है। अध्याय पन्द्रह के अन्तिम श्लोक (15/20) में भगवान ने कहा, ‘इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ।’- यह गोपनीय से भी अति गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया। इसे तत्व से जानकर तू समस्त ज्ञान और परमश्रेय की प्राप्ति कर लेगा। अधयाय सोलह के अन्तिम दो श्लोकों में कहा- ‘यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।’ इस शास्त्रविधि को त्यागकर, कामनाओं से प्रेरित होकर अन्य विधियों से जो भजते हैं उनके जीवन में न सुख है, न समृद्धि है और न परमगति ही है। ‘तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।’ इसलिये अर्जुन! तुम्हारे कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में यह शास्त्र ही प्रमाण है। इसको भली प्रकार अध्ययन कर, तत्पश्चात् आचरण कर। तुम मुझमें निवास करोगे, अविनाशी पद प्राप्त कर लोगे। सदा रहनेवाला जीवन, सदा रहनेवाली शान्ति और समृद्धि पा लोगे।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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