यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दउपशमअन्ततः भगवान ने कहा- अर्जुन! क्या तुमने मेरे उपदेश को एकाग्रचित्त हो श्रवण किया? क्या मोह से उत्पन्न तुम्हारा अज्ञान नष्ट हुआ? अर्जुन ने कहा- नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत। भगवन्! मेरा मोह नष्ट हुआ। मैं स्मृति को प्राप्त हुआ हूँ। केवल सुना भर नहीं अपितु स्मृति में धारण कर लिया है। मैं आपके आदेश का पालन करूँगा, युद्ध करूँगा। उन्होंने धनुष उठा लिया, युद्ध हुआ, विजय प्राप्त की, एक विशुद्ध धर्म-साम्राज्य की स्थापना हुई और एक धर्मशास्त्र के रूप में वही आदि धर्मशास्त्र गीता पुनः प्रसारण में आ गयी। गीता आपका आदि धर्मशास्त्र है। यही मनुस्मृति है, जिसे अर्जुन ने अपनी स्मृति में धारण किया था। मनु के समक्ष दो कृतियों का उल्लेख है-एक तो सूर्य में उपलब्ध गीता, दूसरे वेद मनु के समक्ष उतरे। तीसरी कोई कृति मनु के समय में प्रकट नहीं हुई थी। उस समय लिखने-लिखाने का प्रचलन नहीं था, कागज-कलम का प्रचलन नहीं था इसलिये ज्ञान को श्रुत अर्थात् सुनने और स्मृति-पटल पर धारण करने की परम्परा थी। जिनसे मानवों का प्रार्दुभाव हुआ, सृष्टि के प्रथम मानव उन मनु महाराज ने वेद को श्रुति तथा गीता को स्मृति का सम्मान दिया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 18/73
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