यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 839

Prev.png

यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

उपशम

श्रीकृष्ण ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भौतिक द्रव्यों से इस यज्ञ का कोई सम्बन्ध नहीं है। भौतिक द्रव्यों से सिद्ध होनेवाले यज्ञ अत्यल्प हैं, आप करोड़ का हवन ही क्यों न करें। (4/33) सम्पूर्ण यज्ञ मन और इन्द्रियों की अन्तःक्रिया से सिद्ध होनेवाले हैं। पूर्ण होने पर यज्ञ जिसकी सृष्टि करता है, उस अमृततत्व की जानकारी का नाम ज्ञान है। उस ज्ञानामृत को पान करनेवाले योगी सनातन ब्रह्म में प्रवेश पा जाते हैं। जिसमें प्रवेश पाना था पा ही लिया, तो फिर उस पुरुष का कर्म किये जाने से कोई प्रयोजन नहीं है। इसलिये यावन्मात्र कर्म उस साक्षात्कार सहित ज्ञान में शेष हो जाते हैं। कर्म करने के बन्धन से वह मुक्त हो जाता है। इस प्रकार निर्धारित यज्ञ को कार्यरूप देना कर्म है। कर्म का शुद्ध अर्थ है-आराधना।

इस नियत कर्म, यज्ञार्थ कर्म अथवा तदर्थ कर्म के अतिरिक्त गीता में अन्य कोई कर्म नहीं है।। इसी पर श्रीकृष्ण ने स्थान-स्थान पर बल दिया। अध्याय छः में इसी को उन्होंने ‘कार्यम् कर्म’ कहा। अध्याय सोलह में बताया कि काम, क्रोध और लोभ के त्याग देने पर ही वह कर्म आरम्भ होता है, जो परमश्रेय को दिलानेवाला है। सांसारिक कर्मों में जो जितना व्यस्त है, उसके पास काम, क्रोध और लोभ उतने ही अधिक सजे-सजाये दिखते हैं, समृद्ध पाये जाते हैं। इसी नियत कर्म को उन्होंने शास्त्र-विधानोक्त कर्म की संज्ञा दी। गीता अपने में पूर्ण तथा प्रथम शास्त्र है। सत्रहवें और अठारहवें अध्याय में भी शास्त्रविधि से निर्घारित कर्म, नियम कर्म, कर्तव्य कर्म और पुण्य कर्म से इंगित करके उन्होंने बारम्बार दृढ़ाया कि नियत कर्म ही परमकल्याणकारी है।


Next.png

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः