विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायसंजय, जिसने इन दोनों सम्वाद को भली प्रकार सुना है, अपना निर्णय देता है कि श्रीकृष्ण महायोगेश्वर और अर्जुन एक महात्मा हैं। उनका सम्वाद बारम्बार स्मरण कर वह हर्षित हो रहा है। अतः इसका स्मरण करते रहना चाहिये। उन हरि के रूप को याद करके भी वह बारम्बार हर्षित होता है। अतः बारम्बार स्वरूप का स्मरण करते रहना चाहिये, ध्यान करते रहना चाहिये। जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण है। और जहाँ महात्मा अर्जुन हैं, वहीं श्री है। विजय-विभूति और ध्रुवनीति भी वहीं है। सृष्टि की नीतियाँ आज हैं तो कल बदलेंगी। ध्रुव तो एकमात्र परमात्मा है। उसमें प्रवेश दिलानेवाली नीति ध्रुवनीति भी वहीं है। यदि श्रीकृष्ण और अर्जुन को द्वापरकालीन व्यक्ति-विशेष मान लिया जाय तब तो आज न अर्जुन है और न श्रीकृष्ण। आपको न विजय मिलनी चाहिये और न विभूति। तब तो गीता आपके लिये व्यर्थ है। लेकिन नहीं, श्रीकृष्ण एक योगी थे। अनुराग से पूरित हृदयवाला महात्मा ही अर्जुन है। ये सदैव रहते हैं और रहेंगे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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