यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 832

Prev.png

यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

अष्टदश अध्याय

ईश्वर का निवास बताते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा- अर्जुन! वह ईश्वर सम्पूर्ण भूतों के हृदय-देश में निवास करता है; किन्तु मायारूपी यन्त्र में आरूढ़ होकर लोग भटक रहे हैं, इसलिये नहीं जानते। अतः अर्जुन! तू हृदय में स्थित उस ईश्वर की शरण जा। इससे भी गोपनीय एक रहस्य और है कि सम्पूर्ण धर्मों की चिन्ता छोड़कर तू मेरी शरण में आ, तू मुझे प्राप्त होगा। यह रहस्य अनधिकारी से नहीं कहना चाहिये। जो भक्त नहीं है उससे नहीं कहना चाहिये; लेकिन जो भक्त है उससे अवश्य कहना चाहिये। उससे दुराव रखें तो उसका कल्याण कैसे होगा? अन्त में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने पूछा-अर्जुन! मैंने जो कुछ कहा, उसे तूने भली प्रकार सुना-समझा, तुम्हारा मोह नष्ट हुआ कि नहीं? अर्जुन ने कहा-भगवन्! मेरा मोह नष्ट हो गया है। मैं अपनी स्मृति को प्राप्त हो गया हूँ। आप जो कुछ कहते हैं वही सत्य है और अब मैं वही करूँगा।

Next.png

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः