विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायईश्वर का निवास बताते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा- अर्जुन! वह ईश्वर सम्पूर्ण भूतों के हृदय-देश में निवास करता है; किन्तु मायारूपी यन्त्र में आरूढ़ होकर लोग भटक रहे हैं, इसलिये नहीं जानते। अतः अर्जुन! तू हृदय में स्थित उस ईश्वर की शरण जा। इससे भी गोपनीय एक रहस्य और है कि सम्पूर्ण धर्मों की चिन्ता छोड़कर तू मेरी शरण में आ, तू मुझे प्राप्त होगा। यह रहस्य अनधिकारी से नहीं कहना चाहिये। जो भक्त नहीं है उससे नहीं कहना चाहिये; लेकिन जो भक्त है उससे अवश्य कहना चाहिये। उससे दुराव रखें तो उसका कल्याण कैसे होगा? अन्त में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने पूछा-अर्जुन! मैंने जो कुछ कहा, उसे तूने भली प्रकार सुना-समझा, तुम्हारा मोह नष्ट हुआ कि नहीं? अर्जुन ने कहा-भगवन्! मेरा मोह नष्ट हो गया है। मैं अपनी स्मृति को प्राप्त हो गया हूँ। आप जो कुछ कहते हैं वही सत्य है और अब मैं वही करूँगा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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