यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 831

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

अष्टदश अध्याय


तत्व को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि- अर्जुन! उस परमसिद्धि की विधि बताऊँगाा, जो ज्ञान की परानिष्ठा है। विवेक, वैराग्य, शम, दम, धारावाही चिन्तन और ध्यान की प्रवृत्ति इत्यादि ब्रह्म में प्रवेश दिला देने वाली सारी योग्यताएँ जब परिपक्व हो जाती हैं और काम, क्रोध, मोह, राग, द्वेषादि प्रकृति में घसीटकर रखनेवाली प्रवृत्तियाँ जब पूर्णतः शान्त हो जाती हैं, उस समय वह व्यक्ति ब्रह्म को जानने योग्य होता है। उसी योग्यता का नाम पराभक्ति है। पराभक्ति के द्वारा ही वह तत्व को जानता है। तत्व है क्या? बताया-मैं जो हूँ, जिन विभूतियों से युक्त हूँ, उसको जानता है अर्थात् परमात्मा जो है, अव्यक्त, शाश्वत, अपरिवर्तनशील जिन अलौकिक गुणधर्मोंवाला है, उसे जानता है और जानकर वह तत्क्षण मुझमें स्थित हो जाता है। अतः तत्व है परमतत्व, न कि पाँच या पच्चीस तत्व। प्राप्ति के साथ आत्मा उसी स्वरूप में स्थित हो जाता है, उन्हीं गुणर्धों से युक्त हो जाता है।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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