विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायवर्ण-व्यवस्था के प्रश्न को चौथी बार लेते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि इन्द्रियों का दमन, मन का शमन, एकाग्रता, शरीर-वाणी और मन को इष्ट के अनुरूप तपाना, ईश्वरीय जानकारी का संचार, ईश्वरीय निर्देशन पर चलने की क्षमता इत्यादि ब्रह्म में प्रवेश दिलानेवाली योग्यताएँ ब्राह्मण श्रेणी के कर्म हैं। शौर्य, पीछे न हटने का स्वभाव, सब भावों पर स्वामिभाव, कर्म में प्रवृत्त होने की दक्षता श्रेणी का कर्म है। इन्द्रियों का संरक्षण आत्मिक सम्पत्ति का संवर्द्धन इत्यादि वैश्य श्रेणी के कर्म हैं और परिचर्या शूद्र श्रेणी का कर्म है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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