यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 829

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

अष्टदश अध्याय

वर्ण-व्यवस्था के प्रश्न को चौथी बार लेते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि इन्द्रियों का दमन, मन का शमन, एकाग्रता, शरीर-वाणी और मन को इष्ट के अनुरूप तपाना, ईश्वरीय जानकारी का संचार, ईश्वरीय निर्देशन पर चलने की क्षमता इत्यादि ब्रह्म में प्रवेश दिलानेवाली योग्यताएँ ब्राह्मण श्रेणी के कर्म हैं। शौर्य, पीछे न हटने का स्वभाव, सब भावों पर स्वामिभाव, कर्म में प्रवृत्त होने की दक्षता श्रेणी का कर्म है। इन्द्रियों का संरक्षण आत्मिक सम्पत्ति का संवर्द्धन इत्यादि वैश्य श्रेणी के कर्म हैं और परिचर्या शूद्र श्रेणी का कर्म है।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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