विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायवस्तुतः प्रकृति और पुरुष के बीच एक आकर्षण सीमा है। जब तक मनुष्य प्रकृति में बरतता है, तब तक माया प्रेरणा करती है और जब वह इससे ऊपर उठकर इष्ट को समर्पित हो जाता है और वह इष्ट जब हृदय-देश से रथी हो जाता है, फिर भगवान् करते हैं। ऐसे स्तर पर अर्जुन था, संजय भी था और सबके लिये इस (कक्षा) में पहुँचने का विधान है। अतः यहाँ भगवान प्रेरणा करते हैं। पूर्णज्ञाता महापुरुष, जानने की विधि और ज्ञेय परमात्मा-इन तीनों के संयोग से कर्म की प्रेरणा मिलती है। इसलिये किसी अनुभवी महापुरुष (सद्गुरु) के सान्निध्य में समझने का प्रयास करना चाहिये।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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