विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायइस पर संजय बोला- (ग्यारहवें अध्याय में विराट् रूप का दर्शन करा लेने पर योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा- अर्जुन! अनन्य भक्ति के द्वारा मैं इस प्रकार देखने को (जैसा तूने देखा है), तत्व से जानने तथा प्रवेश करने को सुलभ हूँ (11/54)। इस प्रकार दर्शन करनेवाले साक्षात् मेरे स्वरूप को प्राप्त हो जाते हैं और यहाँ अभी अर्जुन से पूछते है-क्या तुम्हारा मोह नष्ट हुआ? अर्जुन ने कहा-मेरा मोह नष्ट हो गया। मैं अपनी स्मृति को प्राप्त हो गया हूँ। आप जो कहते हैं, वही करूँगा। दर्शन के साथ तो अर्जुन को मुक्त हो जाना चाहिये था। वस्तुतः अर्जुन को तो जो होना था, हो गया; किन्तु शास्त्र भविष्य में आनेवाली पीढ़ी के लिये होता है। उसका उपयोग आप सबके लिये ही है।) |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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