यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 817

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

अष्टदश अध्याय

वह अध्यात्म क्या है? अधिदैव, अधिभूत क्या है? इस शरीर में अधियज्ञ कौन है? वह कर्म क्या है? अन्त समय में आप किस प्रकार जानने में आते हैं? सात प्रश्न किये अध्याय 10/17 में अर्जुन ने जिज्ञासा की कि-निरन्तर चिन्तन करता हुआ मैं किन-किन भावों द्वारा आपका स्मरण करूँ? 11/4 में उसने निवेदन किया कि-जिन विभूतियों का आपने वर्णन किया उन्हें मैं प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ। 12/1-जो अनन्य श्रद्धा से लगे हुए भक्तजन भली प्रकार आपकी उपासना करते हैं और दूसरे जो अक्षर अव्यक्त की उपासना करते हैं, इन दोनों में उत्तम योगवेत्ता कौन है? 14/21-तीनों गुणों से अतीत हुआ पुरुष किन लक्षणों से युक्त होता है तथा मनुष्य किस उपाय से इन तीनों गुणों से अतीत होता है? 17/1-जो मनुष्य उपरोक्त शास्त्रविधि को त्यागकर किन्तु श्रद्धा से युक्त होकर यजन करते हैं उनकी कौन-सी गति होती है? और 18/1 हे महाबाहो! मैं त्याग और सन्यास के यथार्थ स्वरूप को पृथक्-पृथक् जानना चाहता हूँ।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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