विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायकचिचदेतच्छुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा। हे पार्थ! क्या मेरा यह वचन तूने एकाग्रचित्त होकर सुना? क्या तेरा अज्ञान से उत्पन्न मोह नष्ट हुआ? इस पर अर्जुन बोला- अर्जुन उवाच अच्युत! आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया है। मुझे स्मृति प्राप्त हुई है। (जो रहस्यमय ज्ञान मनु ने स्मृति-परम्परा से चलाया, उसी को अर्जुन ने प्राप्त कर लिया।) अब मैं संशयरहित हुआ स्थित हूँ और आपकी आज्ञा का पालन करूँगा। जबकि सैन्य निरीक्षण के समय दोनों ही सेनाओं में स्वजनों को देख अर्जुन व्याकुल हो गया था। उसने निवेदन किया- गोविन्द! स्वजनों को मारकर हम कैसे सुखी होंगे? ऐसे युद्ध से शाश्वत कुलधर्म नष्ट हो जायेगा, पिण्डोदक-क्रिया लुप्त हो जायेगी, वर्णसंकर उत्पन्न होगा। हमलोग समझदार होकर भी पाप करने को उद्यत हुए हैं। क्यों न इससे बचने के लिये उपाय करें? शस्त्रधारी ये कौरव मुझ शस्त्ररहित को रण में मार डालें, वह मरना भी श्रेयस्कर है। गोविन्द! मैं युद्ध नहीं करूँगा-कहता हुआ वह रथ के पिछले भाग में बैठ गया था। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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