विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायश्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः। जो पुरुष श्रद्धा से युक्त और ईष्र्यारहित होकर केवल सुनेगा, वह भी पापों से मुक्त होकर उत्तम कर्म करनेवालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा। अर्थात् करते हुए भी पार न लगे तो सुना भर करें, उत्तम लोक तब भी है; क्योंकि वह चित्त में उन उपदेशों को ग्रहण तो करता है। यहाँ सड़सठ से इकहत्तर तक पाँच श्लोकों में भगवान् श्रीकृष्ण ने यह बताया कि गीता का उपदेश अनधिकारियों को नहीं कहना चाहिये; किन्तु जो श्रद्धावान् है उससे अवश्य कहना चाहिये। जो सुनेगा, वह भक्त मुझे प्राप्त होगा; क्योंकि अतिगोपनीय कथा को सुनकर पुरुष चलने लगता है। जो भक्तों में कहेगा, उससे अधिक प्रिय करनेवाला मेरा कोई नहीं है। जो अध्ययन करेगा, उसके द्वारा में ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊँगा। यज्ञ का परिणाम ही ज्ञान है। जो गीता के अनुसार कर्म करने में असमर्थ है; किन्तु श्रद्धा से मात्र सुनेगा, वह भी पुण्यलोकों को प्राप्त होगा। इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने इसके कहने, सुनने तथा अध्ययन का फल बताया। प्रश्न पूरा हुआ। अब अन्त में वे अर्जुन से पूछते हैं कि कुछ समझ में आया?
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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