विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायइदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन। अर्जुन! इस प्रकार तेरे हित के लिये कहे इस गीता के उपदेश को किसी काल में भूलकर भी न तो तपरहित मनुष्य के प्रति कहना चाहिये, भक्तिरहित के प्रति कहना चाहिये, न बिना सुनने की इच्छावाले के प्रति कहना चाहिये और जो मेरी निन्दा करता है, यह दोष है, वह दोष है-इस प्रकार झूठी आलोचना करता है, उसके प्रति भी नहीं करना चाहिये। महापुरुष ही तो थे, जिनके समक्ष स्तुतिकर्ताओं के साथ-साथ कतिपय निन्दक भी रहे होंगे। इनसे तो नहीं कहना चाहिये; किन्तु प्रश्न स्वाभाविक है कि कहा किससे जाय? इस पर देखें-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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