विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायय इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति। जो मनुष्य मेरी पराभक्ति को प्राप्त कर इस परम रहस्ययुक्त गीता के अपदेश को मेरे भक्तों में कहेगा, वह निःसन्देह मुझे ही प्राप्त होगा। अर्थात् वह भक्त मुझे ही प्राप्त होगा, जो सुन लेगा; क्योंकि उपदेश को भली प्रकार सुनकर हृदयंगम कर लेगा, तो उस पर चलेगा तथा पार पा जायेगा। अब उस उपदेशकर्ता के लिए कहते हैं- न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः। न तो उससे बढ़कर मेरा अतिशय प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्यों में कोई है और उससे बढ़कर मेरा अत्यन्त प्यारा पृथ्वी में दूसरा कोई होगा। किससे? जो मेरे भक्तों में मेरा उपदेश करेगा, उनको उधर उस पथ पर चलायेगा; क्योंकि कल्याण का यही एक स्त्रोत है, राजमार्ग है। अब देखें अध्ययन- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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