विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायमन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। अर्जुन! तू मेरे में ही अनन्य मनवाला हो, मेरा अनन्य भक्त हो, मेरे प्रति श्रद्धा से पूर्ण हो (मेरे समर्पण में अश्रुपात होने लगे), मेरे को ही नमन कर। ऐसा करने से तू मेरे को ही प्राप्त होगा। यह मैं तेरे लिये सत्य प्रतिज्ञा करके कहता हूँ; क्योंकि तू मेरा अत्यन्त प्रिय है। पीछे बताया-ईश्वर हृदय-देश में है, उसकी शरण जा। यहाँ कहते हैं- मेरी शरण आ। यह अति गोपनीय रहस्ययुक्त वचन सुन कि मेरी शरण आओ। वास्तव में योगेश्वर श्रीकृष्ण कहना क्या चाहते हैं? यही कि साधक के लिये सद्गुरु की शरण नितान्त आवश्यक है। श्रीकृष्ण एक पूर्ण योगेश्वर थे। अब समर्पण की विधि बताते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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