विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायसर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः। अर्जुन! सम्पूर्ण गोपनीय से भी अति गोपनीय मेरे रहस्ययुक्त वचन को तू फिर भी सुन। (कहा है, किन्तु फिर भी सुन। साधक के लिये इष्ट सदैव खड़े रहते हैं) क्योंकि तू मेरा अतिशय प्रिय है, इसलिये यह परम हितकारक वचन मैं तेरे लिये फिर भी कहूँगा। वह है क्या?- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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