विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायतमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत। इसलिये हे भारत! सम्पूर्ण भाव से उस ईश्वर की (जो हृदय-देश में स्थित है) अनन्य शरण को प्राप्त हो। उसके कृपा-प्रसाद से तू परमशान्ति शाश्वत परमधाम को प्राप्त होगा। अतः ध्यान करना है तो हृदय-देश में करें। यह जातने हुए मन्दिर, मस्जिद, चर्च या अन्यत्र खोजना समय बरबाद करना है। हाँ जानकारी नहीं है तब तक स्वभाविक है। ईश्वर का निवास-स्थान हृदय है। भागवत के चतुःश्लोकी गीता का सारांश भी यही है कि वैसे तो मैं सर्वत्र हूँ; किन्तु प्राप्त होता हूँ तो हृदय-देश में ध्यान करने से ही।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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