विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्याययदहंकारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे। जो तू अहंकार का आश्रय लेकर ऐसा मानता है कि युद्ध नहीं करूँगा, तो यह तेरा निश्चय मिथ्या है; क्योंकि तेरा स्वभाव तुझे बलात् युद्ध में लगा देगा। स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा। कौन्तेय! मोहवश तू जिस कर्म को नहीं करना चाहता, उसको भी अपने स्वभाव से उत्पन्न हुए कर्म से बँधा हुआ परवश होकर करेगा। प्रकृति के संघर्ष से न भागने का तुम्हारा क्षत्रिय श्रेणी का स्वभाव तुम्हें बरबस कर्म में लगायेगा। प्रश्न पूरा हुआ। अब वह ईश्वर रहता कहाँ है? इस पर कहते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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