विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्याय
सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः। मुझ पर विशेष रूप से आश्रित हुआ पुरुष सम्पूर्ण कर्मों को सदा करता हुआ, लेशमात्र भी त्रुटि न रखकर करता हुआ मेरे कृपा-प्रसादसे शाश्वत अविनाशी परमपद को प्राप्त होता है। कर्म वही है-नियत कर्म, यज्ञ की प्रक्रिया। पूर्ण योगेश्वर सद्गुरु के आश्रित साधक उनके कृपा-प्रसाद से शीघ्र पा जाता है। अतः उसे पाने के लिये समर्पण आवश्यक है। चेतसा सर्वकर्माणि मयि सन्नयस्य मत्परः।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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