विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायदूसरे अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा-आत्मा ही सत्य है, सनातन है, अव्यक्त है और अमृतस्वरूप है; किन्तु इन विभूतियों से युक्त आत्मा को केवल तत्वदर्शियों ने देखा। अब वहाँ प्रश्न स्वाभाविक है कि वस्तुतः तत्वदर्शिता है क्या? बहुत से लोग पाँच तत्व, पचीस तत्व की बौद्धिक गणना करने लगते हैं; किन्तु इस पर श्रीकृष्ण ने यहाँ अठारहवें अध्याय में निर्णय दिया कि परमतत्व है परमात्मा, जो उसे जानता है वही तत्वदर्शी है। अब यदि आपको तत्व की चाह है, परमात्मतत्व की चाह है तो भजन-चिन्तन आवश्यक है। यहाँ श्लोक उनचास से पचपन तक योगेश्वर श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया कि सन्यास मार्ग में भी कर्म करना है। उन्होंने कहा, ‘सन्न्यासेन’- सन्यास के द्वारा (अर्थात् ज्ञानयोग के द्वारा) कर्म करते-करते इच्छारहित, असक्तिरहित तथा जीते हुए शुद्ध अन्तःकरणवाला पुरुष जिस प्रकार नैष्कम्र्य की परमसिद्धि को प्राप्त होता है, उसे संक्षेप में कहूँगा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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