विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायभक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्वतः। उस पराभक्ति के द्वारा वह मझे तत्व से भली प्रकार जानता है। वह तत्व क्या? मैं जो और जिस प्रभाव वाला हूँ; अजर, अमर, शाश्वत जिन अलौकिक गुणधर्मोंवाला हूँ, उसे जानता है और मुझे तत्व से जानकर तत्काल ही मुझमें प्रवेश कर जाता है। प्राप्तिकाल में तो भगवान दिखायी पड़ते हैं और प्राप्ति के ठीक बाद, तत्क्षण वह अपने ही आत्मस्वरूप को उन ईश्वरीय गुणधर्मो। से युक्त पाता है कि आत्मा ही अजर, अमर, शाश्वत, अव्यक्त और सनातन है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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