विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायअहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्। अहंकार, बल, घमण्ड, काम, क्रोध, बाह्य वस्तुओं और आन्तरिक चिन्तनों का त्याग कर, ममतारहित और शान्त अन्तःकरण हुआ पुरुष परब्रह्म के साथ एकीभाव होने के लिये योग्य होता है। आगे देखें- ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति। ब्रह्म के साथ एकीभाव होने की योग्यता वाला वह प्रसन्नचित्त पुरुष न तो किसी वस्तु के लिये शोक करता है और न किसी की आकांक्षा ही करता है। सब भूतों में समभाव हुआ वह भक्ति की पराकाष्ठा पर है। भक्ति अपना परिणाम देने की स्थिति में है, जहाँ ब्रह्म में प्रवेश मिलता है। अब- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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