विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायनिहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन। हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर भी हमें क्या प्रसन्नता होगी? जहाँ धृतराष्ट्र अर्थात् धृष्टता का राष्ट्र है, उससे उत्पन्न मोह रूपी दुर्योधन इत्यादि को मारकर भी हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारकर हमें पाप ही तो लगेगा। जो जीवन यापन के तुच्छ लाभ के लिये अनीति अपनाता है, वह आततायी कहलाता है; किन्तु वस्तुतः इससे भी बड़ा आततायी वह है, जो आत्मा के पथ में अवरोध उत्पन्न करता है। आत्म दर्शन में बाधक काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि का समूह ही आततायी है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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