भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 142

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भागवत धर्म मीमांसा

10. पूजा

(27.5) यद्यदिष्टतमं लोके यच्चातिप्रियमात्मनः।
तत्तन्निवेदयेन्मह्यं तदानन्त्याय कल्पते ॥[1]

लोगों में जो चीज अच्छी मानी जाती है – इष्टतमं लोके, वह भगवान को अर्पण करें, च यत् आत्मनः अतिप्रियं तत् तत् मह्यं निवेदयेत् – और जो अपने को अतिप्रिय है, वह भी मुझ भगवान को अर्पण करें। ‘निवेदयेत्’ यानि अर्पण करें। इस तरह अर्पण दो प्रकार का माना गया है। बाबा ने दोनों काम कर दिये हैं। बाबा घर से निकला, तो परीक्षा के सर्टिफिकेट अग्निनारायण को अर्पण करके निकाला। यह हुआ – लोग जिसे अच्छी चीज मानते हैं, उसका अर्पण। सर्टिफिकेट के लिए लोगों में बहुत कद्र, मान्यता होती है। तो बाबा ने एक तो यह काम कर दिया। फिर दूसरा भी! बाबा उन दिनों कविता बनाता था। लिखा, कविता अच्छी बनी, मन प्रसन्न हुआ, बाद में गंगा को अर्पण कर दिया – ऐसा चलता था।

ये दोनों प्रकार के अर्पण करेंगे तो परिणाम क्या होगा? आनन्त्याय कल्पते – मुक्ति के लिए मदद मिलती है। मनुष्य छोटी-सी चीज अर्पण करता है। चीज तो छोटी होती है, लेकिन वह अर्पण करने से मनुष्य व्यापक बनता है। यदि इस तरह मनुष्य सोचेगा, तो आगे चलकर वह अपना जीवन भी अर्पण कर देगा, क्योंकि जीव तो मनुष्य को अतिप्रिय होता है।

(27.6) श्रद्धयोपाहृतं प्रेष्ठं भक्तेन मम वार्यपि ।
भूर्यप्यभक्तोपहृतं न मे तोषाय कल्पते॥[2]

श्रद्धा उपाहृतं भक्तेन वारि अपि– किसी भक्त ने प्रेम और भक्ति से केवल पानी चढ़ा दिया, तो वह भी मुझे अत्यन्त प्रिय होता है। प्रेष्ठं यानि प्रियतम। प्रिय, प्रेय, प्रेष्ठ, इस तरह यह शब्द बना है। और अभक्त ने बहुत अधिक दिया, तो भी वह मेरे सन्तोष का कारण नहीं होता। कितना दिया, यह गौण चीज है। कैसे दिया, यही मुख्य वस्तु है। भक्ति से दिया, तो मुझे प्रिय है, यह तो सीधी-सादी बात है। गीता ने भी कहा: पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।

यह तो सभी जानते हैं। जानते सब हैं, पर सवाल है करने का!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत-11.11.41
  2. भागवत-11.27.17-18

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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