भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 43

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16 गुण-विकास

 
1. अहिंसा सत्यमस्तेयं असंगो ह्रीरसंचयः।
आस्तिक्यं ब्रह्मचर्यं च मौनं स्थैरयं क्षमाऽभयम्॥
अर्थः
अहिंसा, सत्य, अस्तेय या अपहरण न करना, असंगता, विनय, असंग्रह, आस्तिक्य, ब्रह्मचर्य, मौन, स्थिरता, क्षमा, अभय (ये बारह यम)
 
2. शौचं जपस् तपो होमः श्रद्धाऽऽतिथ्यं मदर्चनम्।
तीर्थाटनं परार्थेहा तुष्टिराचार्य सेवनम्॥
अर्थः
और शुचिता (आंतर और बाह्य शुद्धि), जप, तप, हवन, श्रद्धा, अतिथि-सेवा, मेरी पूजा, तीर्थयात्रा, परोपकार की इच्छा, समाधान और गुरुसेवा (ये बारह नियम) शास्त्रों ने बताए हैं। तात उद्धव! इनकी उपासना, पालन करने पर ये पुरुष के सभी मनोरथ पूर्ण कर देते हैं।
 
3. ऐते यमाः सनियमा उभयोर् द्वादश स्मृताः।
पुंसां उपासितास् तात! यथाकामं दुहन्ति हि॥
अर्थः
और शुचिता (आंतर और बाह्य शुद्धि), जप, तप, हवन, श्रद्धा, अतिथि-सेवा, मेरी पूजा, तीर्थयात्रा, परोपकार की इच्छा, समाधान और गुरुसेवा (ये बारह नियम) शास्त्रों ने बताए हैं। तात् उद्धव! इनकी उपासना, पालन करने पर ये पुरुष के सभी मनोरथ पूर्ण कर देते हैं।
 
4. शमो मन्निष्ठता बुद्धेर् दम इंद्रिय-संयमः।
तितिक्षा दुःख-संमर्षो जिह्वोपस्थ-जयो धृतिः॥
अर्थः
मुझमें बुद्धि की निष्ठा ही ‘शम’ है। इंद्रिय-निग्रह ‘दम’ है। दुःख सहन करना ही ‘तितिक्षा’ है। जिह्वा और जननेंद्रिय पर विजय पाना ही ‘घृति’ है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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