भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 58

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23. भिक्षु गीत

 
1. क्षिप्तोऽवमानितोऽसद्भिः प्रलब्धोऽसूयितोऽथवा।
ताडितः सन्निबद्धो वा वृत्त्या वा परिहापितः।
श्रेयस्कामः कृच्छुगत आत्मनाऽऽत्मानमुद्धरेत्॥
अर्थः
दुष्ट लोग आक्षेप करें, अपमान करें, ठग लें, मत्सर करें, मारें, बंधन में डालें, आजीविका छीन लें या दुःख में डालें, तो भी मोक्षार्थी स्वयं ही अपनी आत्मा का उद्धार करे।
 
2. नायं जनो मे सुखदु ख-हेतुर्
न देवताऽऽत्मा ग्रह-कर्म-कालाः।
मनः परं कारणमामनन्ति
संसार-चक्रं परिवर्तयेद् यत्॥
अर्थः
मेरे सुख-दुख का कारण न ये मनुष्य हैं, न देवता, न यह शरीर और न ग्रह। कर्म और काल आदि भी कारण नहीं। महात्मा लोग (सुख-दुखात्मक) संसाररूप चक्र घुमाने वाले मन को ही इनका कारण बताते हैं।
 
3. मनो गुणान् वै सृजते बलीयस्
ततश्च कर्माणि विलक्षणानि।
शुक्लानि कृष्णान्यथ लोहितानि
तेभ्यः सर्वणाः सृतयो भवन्ति॥
अर्थः
मन अत्यंत बलवान है। वह (सात्त्विकादि) गुणों (गुणवृत्तियों) को उत्पन्न करता है। उनसे (सात्त्विक, राजस और तामस जैसे) तरह-तरह के कर्म पैदा होते हैं और उन (उन कर्मों) से सवर्ण यानि कर्मानुरूप विविध गतियाँ उत्पन्न होती हैं।
 
4. अनीह आत्मा मनसा समीहता
हिरण्मयो मत्सख उद्विचष्टे।
मनः स्वलिंगं परिगृह्य कामान्
जुषन् निबद्धो गुणसंगतोऽसौ॥
अर्थः
(मन ही सब तरह की चेष्टाएँ करता है।) मन इच्छा करते हुए भी अत्मा निरिच्छ ही रहता है। वह प्रकाशमय, मेरा सखा, केवल साक्षी रूप रहता है। वह मन को अपना रूप समझकर विषयों का भोग करते हुए गुणों की आसक्ति से बंधन में पड़ता है।
 
5. दानं स्वधर्मो नियमो यमश्च
श्रुतानि कर्माणि च सद्व्रतानि।
सर्वे मनोनिग्रहलक्षणान्ताः
परो हि योगो मनसः समाधिः॥
अर्थः
दान, स्वधर्माचरण, यम, नियम, वेदाध्ययन, सत्कर्म और उत्तमोत्त्म व्रत, सभी का अंतिम फल है- मन का एकाग्र होना। मन साम्यावस्था में रहे, वास्तव में यही परम योग है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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