भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 42

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15 सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा

1. जितेंद्रियस्य दांतस्य जित-श्वासात्मनो मुनेः।
मद्धारणां धारयतः का सा सिद्धिः सुदुर्लभा॥
अर्थः
जितेंद्रिय, दमनशील प्राणजयी, मनोजयी मुनि के लिए ऐसी कौन सी सिद्धि है, जो अत्यंत दुर्लभ है?
 
2. अंतरायान् वदन्त्येता युंजतो योगमुत्तमम्।
मया संपद्यमानस्य काल-क्षपण-हेतवः॥
अर्थः
मुझसे एकरूप होने के लिए उत्तम योग-साधना करने वाले योगी के मार्ग में ये सिद्धियाँ समय का अपव्यय करने वाली बाधाएँ ही हैं, ऐसा (अनुभवी लोग) कहते हैं।
 
3. तेजः श्रीः कीर्तिरैश्वर्यं ह्वीस् त्यागः सौभगं भगः।
वीरयं तितिक्षा विज्ञानं यत्र यत्र स मेंऽशकः॥
अर्थः
तेज, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य, लज्जा यानि विनय, उदारता, सौंदर्य, भाग्यशीलता, वीर्य, सहनशीलता, विज्ञान आदि जो भी श्रेष्ठ गुण जहाँ कहीं होते हैं, वे मेरे ही छोटे से अंश हैं।
 
4. ऐतास् ते कीर्तिताः सर्वाः संक्षेपेण विभूतयः।
मनोविकारा ऐवैते यथा वाचाऽभिधीयते॥
अर्थः
तुम्हारे प्रश्न के अनुसार मैंने अपनी इन विभूतियों का संक्षेप में वर्णन किया। वे मनोविकार मात्र हैं। वाणी से बोली जानेवाली वस्तु (यानि वाचारम्भण मात्र) ही उसका स्वरूप है। (वास्तव में उनकी सत्ता ही नहीं है।)
 
5. वाचं यच्छ मनो यच्छ प्राणान् यच्छेंद्रियाणि च।
आत्माममात्मना यच्छ न भूयः कल्पसेऽध्वने।।
अर्थः
इसलिए वाणी, मन, प्राण, इंद्रियाँ, इनका निरोध करो। आत्मशक्ति से अपना संयम करो। फिर तू पुनः जन्म-मरण के चक्र में नहीं फंसेगा।
6. यो वै वाङ्-मनसी सम्यक् असंयच्छन् धिया यतिः।
तस्य व्रतं तपो ज्ञानं स्रवत्याम-घटांबुवत्॥
अर्थः
जो यति बुद्धि से अपनी वाणी और मन का भलीभाँति निरोध नहीं करता, उसके व्रत, तप, ज्ञान (मिट्टी के) कच्चे घड़े में स्थित पानी की तरह चू जाते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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